कविताअतुकांत कविता
सोचती हूं
एक पेड़ की छांव में बैठ
झांककर देखूं
मन के उपवन में कि
मेरे दिल का फूल
समय से पहले क्यों
मुर्झा रहा
कौन है जो उसे
अपने पास बुला रहा
उसे आवाज देकर
पुकार रहा
उसके आसपास मौजूद
रहता है हरदम पर
उसकी आंखों के सामने
एक आकृति का रूप लेकर
उभरकर नहीं आ रहा
अहसासों की बारिश
होती रहती है
लगातार
बिना रुके
सुबह, शाम और
सपनों में भी
एक पल का चैन नहीं है
आराम नहीं है
सुकून नहीं मिल रहा
मेरी रूह को
यह दुनिया छोड़कर भी
कोई संसार तलाशुं
अपनी आशाओं का
सपनों को पूर्ण करने के
लिए तो
मंजिल का सफर तय
करना
मुश्किल प्रतीत हो रहा
ऐ मेरे जीवनसाथी
तेरे बिना।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001