कविताअतुकांत कविता
धूप के आर पार
पार्टी के प्रमुख नेता व अपने समाज की शान , श्री दयाल बाबूजी को गर्व है अपने बच्चों पर। बेटी चन्द्रमणि एम् बी ए कर चुकी है। बेटा सूरज विदेश में अपने ताऊ से सफ़ल नेता बनने की युक्तियाँ सीख रहा है।
बेटी के ब्याह की तैयारियाँ बड़ी सादगी से होना है। पूर्व आय जी के बेटे से रिश्ता तय हुआ। समधी जी के साथ बैठ मशविरा कर निश्चित किया कि आर्यसमाज विधि से बिना दहेज के विवाह संपन्न होगा। किसी तरह का लेनदेन नहीं। सहभोज भी दोनों पक्ष मिलकर करेंगे।
बाहर लग्न के श्लोक बोले जा रहें हैं। नेता जी बंद कमरे में नगर सेठ के साथ चर्चा कर रहे हैं। कंजूस सेठजी ने मौके पर चोका लगाया। सोचा ऐसे घर में बेटी का रिश्ता लगे हाथ हो जाए तो गंगा नहाए। लेकिन नेताजी की शर्तें सुन उनके होश फ़ाख्ता हो गए। शादी शान से हो, कम से कम तीन चार किलो सोना, बेटे के चुनावी केरियर में मदद और भी ना जाने क्या क्या। आख़िर में ठप्पा लगाया, " सब पक्का समझो, हमारी डॉक्टर बहु का अस्पताल हम मिलकर खुलवा देंगे।
आप जानते ही हैं मैं कितना सादगी पसन्द हूँ। लेकिन क्या करूँ, मेरी बीमार माताश्री किसी हालत में समझौता करने को राजी नहीं,इकलौता पोता जो ठहरा।
हाँ, यह बात हमारे तक ही रहना चाहिए। चलिए समधी जी, चाय ठंडी हो गई होगी।"
सेठ जी सोचने लगे," वाह
इसीलिए हाथी दो तरह के दाँत रखता है। "
सरला मेहता