कवितालयबद्ध कविता
तेरे मेरे दरमियां
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तेरे मेरे दरमियां न जाने कब एक रिश्ता बन गया..
दोस्ती के सफर में न जाने कब हमसफ़र बन गया..
पता नही कब औऱ कैसे गलतफहमियां बढ़ गई...
छोटी-छोटी सी बातें क्यों राई का पहाड़ बन गईं..
कुछ अधूरे ख्वाब न जाने क्यों पूरे न हो सके..
बिन कहे दिल की बात न जाने क्यों न समझ सके..
अधूरी कहानी पर खामोश अब लबो का पहरा हैं..
शब्दों की चोट रूह पर लगी,इसलिए दर्द गहरा है..
अपने ही देते दर्द,दर्द गैरो ने दिया होता कोई बात नही..
दर्द भी अपना है,दर्द दवा भी अपना है कोई बात नही..
तेरे मेरे दरमियां रिश्ते में अब फर्क बस इतना है..
तू अभिमान में 'जी' रहा, मुझे रिश्तो में जीना मरना है..
ममता गुप्ता✍️