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आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग

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आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग...
शायद गिरगिट को भी फेल कर रहे है लोग..

बढ़ रहा है, दिन-ब-दिन लोगों का अभिमान।
एक दूसरे का शौक से अपमान कर रहे है लोग..

प्रेम शब्द के नाम पर, समर्पण का दिखावा कर..
न जाने क्यों दिलों में, नफरत पाल रहे हैं लोग...

खुद की गलतियों को नजरअंदाज कर बैठे हैं..
दूसरों की गलतियों पर ध्यान धर रहे है लोग..

पाप-पुण्य को भूलकर,जिंदगी की दौड़ में..
इंसानियत को छोड़कर,छल कर रहे हैं लोग...

न जाने आग, कैसी दिलों में लगाकर बैठे हैं..
उठता नही धुंआ ,फिर भी जल रहे है लोग..

बात बात पर बिगड़े रिश्ते,अपनो की जुदाई में....
प्रेम के दो शब्द कहाँ,अब जहर उगल रहे हैं लोग..

लोभ ,क्रोध,मोह-माया के विकारों में घिरकर...
खुशियों की तलाश में दर दर भटक रहे हैं लोग..

न जाने कैसी प्यास है, जो कभी मिटती नही...
एक दूसरे का लहू पीने को मचल रहे हैं लोग..

डरती हूँ सोचकर न जाने कैसा होगा आने वाला कल..
शायद खुद के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है लोग...

ममता गुप्ता✍️

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