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धरोहर - Ritu Garg (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

धरोहर

  • 360
  • 12 Min Read

विषय धरोहर
लघु कथा

नवीन ने अपने दस वर्षीय राहुल को एक लिफाफा देते हुए कहा कि मैं अपनी धरोहर तुमको दे रहा हूं ।
इसे संभाल कर रखना मुझे उम्मीद है यदि किसी का सहारा नहीं हुआ तो यह तुम्हारे काम आएगी।
एक टक अपने पिता नवीन को निहारे जा रहा था कुछ प्रश्न उसके अंतर्मन में कोलाहल पैदा किए थे ,फिर भी वह चुपचाप उस लिफाफे को अपने पास संभाल कर रख लेता है। अबोध मन जीवन में आने वाली परिस्थितियों से अनजान था।
राहुल मेहनती एवं इमानदार था । वहअपना हर काम मेहनत और लगन से करता था ।समय धीरे-धीरे बीतता गया।
समय के साथ-साथ नवीन भी अब गृहस्थी का बोझ उठाने में अपने आप को असमर्थ मानने लगा था।
एकांत में बैठकर सोचता राहुल भी बड़ा हो गया है उसे भी अब समाज में रहने के तौर तरीके सीख लेने चाहिए। कभी-कभी वह अपने मन के बात राहुल से कर लिया करता था। राहुल भी यदा-कदा अपने पिताजी से भविष्य की योजना के बारे में चर्चा करता ।
एक दिन राहुल ने अपने पिताजी से पूछ ही लिया कि पिताजी उस लिफाफे में क्या है!
नवीन ने लिफाफा मंगवाया और उसमें से कुछ निकलते हुए राहुल के हाथ में देते हुए कहा कि यह लो तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए अपनी अमानत के तौर पर मुझे दी थी यह पीछे बरामदे में जो कच्ची जगह उसमें डाल कर आ जाओ।
राहुल बहुत विस्मित था!
अब नवीन अपना समय बरामदे में व्यतीत करने लगा ।समय के साथ-साथ उसमें अंकुर फूटने लगे नवीन के मन में आशा की किरण जाग उठी मन ही मन नवीन ने निर्णय कर लिया था कि वह राहुल को उपहार में नई पौध देगा।
नवीन खुश था कि उसने संस्कारों की नई पौध पैदा की है जो आशा की किरण के साथ राहुल के जीवन को सुगंधित कर उसे महका देगी।
नवीन निश्चित था कि उसने स्नेह से सिंचित कर अपने जीवन का निवेश कर राहुल का नई पौध द्वारा सफल जीवन बना रहा था। जो उसके कांतिमय जीवन को सुगंधित कर उसे महका देगा।
वह राहुल को संदेश दे रहा था कि.....
निवेशक बनो निवेश करो,
कांति मय जीवन को करो,
दुविधो को पार करो,
स्नेह से सिंचित कर,
ऐसा एक पौधारोपण करो,
युगों युगों तक नवनिर्माण करो,
बिन मेहनत बीज, पौधा बनता नहीं
बिना हवा पानी के खिलता नहीं
जीवन रूपी पौधे में कुछ संचय कर।
क्योंकि नई पौध द्वारा वह अपना कारोबार शुरू कर सकता था जिससे उसे दिन दूनी उन्नति कर धनार्जन कर सकता था। क्योंकि संस्कारों द्वारा एक नई पौध का जन्म जो हुआ था।
अब नवीन ने ठंडी सांस ली ।उसने अपने जीवन का कर्तव्य पूर्ण कर लिया था और खो गया था अतीत के पन्नों में, पिताजी ने भी अपनी नई पौध उसके हाथों में दी थी। जिससे वह नई नई तकनीक द्वारा अपने जीवन को सफल बनाने में कामयाब रहा।

ऋतु गर्ग
स्वरचित,मौलिक रचना
सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल

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दादी की परी
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