कवितालयबद्ध कविता
( ना जाने क्यूँ मुझे लगता है कि दिल्ली, मेरी दिल्ली ऐसी नहीं होनी चाहिए जैसी आज दिखती है. दोषी कौन है, ये या वो, या फिर थोडा़ ये और थोडा़ वो और साथ में काफी हद तक हम सब भी ? यह फैसला मैं आप सब पर छोड़ता हूँ. विश्वास के इस संकट को पिरोकर लायी है मेरी यह छंदमाला )
दिल्ली मेरी दिल्ली
दिल्ली दिल वालों की दिल्ली
उडी़ भरोसे की यूँ खिल्ली
हुई कील से सील दिल्ली
किले में तब्दील दिल्ली
दिल्ली मेरी दिल्ली
हे सपनों के सौदागर,
ले गये खुद के दिखाये
सारे सपने चुराकर
हाँ, टिमटिमाता सा हर एक
झिलमिलाता सा सपना
हो सका जो
कभी ना अपना
पर सुख-चैन की नींद पर तो
बनता ही है हक अपना
क्यूँ पड़ रहा यूँ
महँगाई की इस
धधकती आँच पर
बार-बार हम सबको यूँ तपना
क्यूँ अटका दिया है
इस पथ पे
यूँ कील ठोककर
किस्मत में
कर रहे महफूज यूँ
खुद की दिल्ली
पर क्या है ये बस
आपकी खुद की ही दिल्ली
कुछ तो है
हम सबकी भी दिल्ली
कुछ इसकी,
कुछ उसकी दिल्ली
कुछ तेरी,
कुछ मेरी दिल्ली
हाँ, दिल्ली दिल वालों की दिल्ली
हाँ, मैं भी कह सकता हूँ
दिल्ली मेरी दिल्ली
हाँ, इस तरह ना कैद हो,
अकेली और गमगीन दिल्ली
यूँ अवाम से इस तरह
मत छीन दिल्ली
मत कर नफरत से सील दिल्ली
दिल वालों की दिलदार दिल्ली
एक गौरवमय इतिहास की
अद्भुत यादगार दिल्ली
दिल्ली मेरी दिल्ली
बनी रहे माँ के नयनों का नीर दिल्ली
बनी रहे एक प्रेम सरित का तीर दिल्ली
इस देश की तकदीर दिल्ली
विविधता में एकता की
एक अद्भुत तस्वीर दिल्ली
भारत माँ की ममता समेटे
एक महका चीर दिल्ली
हर भाषा, मत और हर जाति
और हर अंचल की कडि़यों से
बने एकता की प्रबल जंजीर दिल्ली
जय जवान और जय किसान के
जज़्बातों की लाजवाब तहरीर दिल्ली
" जियो और जीने दो " का
पैगाम देती
गंगाजमनी तहजी़ब दिल्ली
हर हिंदुस्तानी के दिल के करीब दिल्ली
दिल्ली मेरी दिल्ली
दिल्ली, दिल वालों की दिल्ली
दिल्ली मेरी दिल्ली
दिल्ली मेरी दिल्ली
द्वारा: सुधीर अधीर