कविताअतुकांत कविता
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
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तेरे इनकार में ही इकरार है
होठों पर ना के सिवा कुछ और नहीं पर दिल में हाँ के सिवा और क्या है ?
आँखें कह देती हैं तेरा हाल
अब आजा पास मेरे
मत कर एक भी सवाल
ये प्यार की घडी है
यहाँ कहाँ चलना और रूकना है
हर पल एक सा है
कहाँ उठना और झुकना है
अपने से भी बढ़कर
तुम्हें देखता हूँ
तेरे चेहरे पर क्या लिखा
वही निरेखता हूँ |
तुम्हारी जुल्फों के साए में जी सकूँ
यही तो चाहा था मैंने
तेरी बाहों में साँस लूँ
यहीं तो धडकन कहती है
तू हाथ छुड़ा ले
तो भी ये बाहें तुम्हे पकडती है
तेरे बिना यह धड़कन भी
अब कहाँ धडयकती है |
कृष्ण तवक्या सिंह
14.03.2021.