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चुनाव - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

चुनाव

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चुनाव
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चुनाव चाहे पढ़ायी के क्षेत्र में ,खेल के क्षेत्र में हो ,चाहे राजनीति के क्षेत्र मे या जीवन के अन्य किसी क्षेत्र में हो | हमें एक परीक्षा से गुजरना पड़ता है | और उस परीक्षा में अव्वल आना होता है | चुनाव में हर प्रत्याशी का भाग्य दूसरों की कलम से लिखा जाता है | इसलिए दूसरों पर उनकी निर्भरता बढ़ जाती है और वे भगवान के शरणागत हो जाते हैं | ऐसे उपाय तो हर क्षेत्र में लोग करते हैं ,पर राजनीति के क्षेत्र में यह और विकराल रूप धारण कर लेता है | यहाँ भगवान की अराधना से लेकर शैतानों को साधना पड़ता है |
रहम अपने दोस्तों से छुट्टी पाकर घर में कदम रखा ही था कि उसके पिता योगराज ने आवाज दी | वह घबरा गया आखिर क्या हुआ | कभी तो वह मुझे नहीं बुलाते इस समय | और बुलाते भी कैसे वह तो रात बारह एक बजे तक लोगों से घिरे रहते हैं जब भी घर पर होते हैं | पर आज न जाने क्यों अकेले बैठे हैं | किसी अनहोनी के अंदेशे में उसके मन में कई सवाल उठने लगे | एक बार वह घर के भीतर गया , घर में सबको सुरक्षित देखकर उसकी जान में जान आयी | वह मुँह हाथ धोकर तुरत अपने पिता के सामने उपस्थित हुआ |आज उन्हें अकेले देखकर उसे भी आश्चर्य हो रहा था | उसके मन में यह सवाल बार बार उठ रहे थे ,पर पिता को मायूस देखकर उसमें सवाल पूछने की हिम्मत नहीं पैदा हो पा रही थी |उसे डर था उनके क्रोधित हो जाने का | लेकिन आज योगराज ने जैसे क्रोध जैसी व्याधियों पर विजय प्राप्त कर ली थी | उन्होंने रहम को अपने पास बैठने का इशारा किया और खुद ही बतलाने वगे |
योगराज राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी थे | यूँ तो वे कॉरपोरेशन के चुनाव जीतते आए थे ,पर उनकी पहुँच राज्य से लेकर केन्द्रीय स्तर के नेताओं तक थी | पर इतनी ऊँची पहुँच के बावजूद भी उन्हें इसबार पार्टी नेतृत्व ने टिकट नहीं देने का फैसला किया था | मन में तो इनके यही आ रहा था कि दूसरी पार्टी में चला जाऊँ या फिर अपनी पार्टी बना लूँ | पर दोनों ही स्थितियों में ये अपनी जीत के प्रति अपने आपको आश्वस्त नहीं कर पा रहे थे |
इसलिए इन ख्यालों को मन से निकाल देने में ही अपनी भलाई समझ रहे थे | आज वे सभी लोग जो कल तक इनके दरबार के बैठक में इनके साथ शामिल हुआ करते थे आज नये संभावित उम्मीदवार के यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की होड़ में थे | योगराज को आज अपने पराए का अच्छा ज्ञान मिल गया था | उन्हें आज केवल अपनेे पुत्र में ही अपनापन दिख रहा था | ऐसा नहीं है कि योगराज की उम्मीदवारी रद्द होने से कुछ लोग मायूस नहीं थे | वे जिन्होंनें बरसों तक स्वामिभक्ति दिखाकर उनसे पहचान बनायी थी और उनकी बदौलत अपने कद में वृद्धि कर ली थी | अचानक उन्हें अपना कद छोटा होने का भय सताने लगा था | नये व्यक्ति कृपा इतनी जल्दी उनपर हो पाएगी यह संदेह उनके मन को विचलित कर रहा था |
योगराज ने रहम से कहा बेटा पार्टी ने इसबार मुझे टिकट नहीं देने का फैसला किया है | लेकिन मैं चाहता हूँ कि यह सीट अपने ही घर में रहे किसी दूसरे के पास न जाए इसलिए मैंने तुम्हारी उम्मीदवारी पेश करने का निर्णय लिया है | तुम्हारी माँ का स्वास्थ्य अच्छा होता तो मैं तुम्हें यह कष्ट करने को नहीं कहता | रहम ने सकुचाते हुए कहा मुझे इसका कोई अनुभव नहीं है और फिर मैैंने ऐसा कोई काम भी नहीं किया है कि जनता मुझे अपना प्रतिनिधि बनाए | मुझे तो हार निश्चित लगती है |
योगराज उन्हें समझाने लगे ,चुनाव काम औऱ पहचान की बदौलत नहीं जीते जाते | तुम्हारी सबसे बड़ी पहचान है कि तुम मेरे बेटे हो | और सबको यह पता है कि तुम जीतोगे तो मैं ही जीतूँगा | नाम तुम्हारा रहेगा पर काम हमारा रहेेगा | फिर मेरे न रहने पर भी तुम मेरे ही पदचिन्हों पर चलोगे या वे तुम्हें मेरे पदचिन्हों पर चलना सीखा देंगे याचलना सीखने के लिए बाध्य कर देंगे |
फिर चुनाव जीतने में क्या है इस क्षेत्र में अपनी जाति की संख्या ज्यादा है | पार्टी की लहर है | और सबसे बड़ी बात ज्यादातर लोग गरीब और बेरोजगार हैं | उन्हें कुछ पैसे देकर ,कुछ लोगों को ठेकेदारी में हिस्सा देकर उन्हें अपनी तरफ करना कोई मुश्किल काम नहीं | यहाँ कोई प्रक्रिया या व्यवस्था नहीं ,किसी भी काम के लिए मजबूत आदमी का सहारा और पैरवी चाहिए | और हमसे मजबूत कौन है इस क्षेत्र में धन और बल में | इसलिए जीत के प्रति आश्वस्त रहो | गरीब और कमजोर जनता को अपनी तरफ कैसे किया जाता है | इतने वर्षों के अनुभव ने मुझे इसका अच्छा ज्ञान करा दिया है |
तभी तो इतने वर्षों तक शासन करने के वावजूद सड़कें तो बदलीं पर उसपर चलनेवाला आदमी नहीं बदला | पक्की सड़कों पर चलनेवाला आदमी आद भी उतना ही कच्चा और कमजोर है | उसे हर कदम पर मेरे जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की जरूरत होती है | जो कल भी थी और आगे भी होती रहेगी | क्योकिं हमने उसके मजबूत होने की व्यवस्था न कभी बनने दी है और न कभी बनने दूँगा | उसकी सोच मुझसे निकलकर मुझमें ही विलीन हो जाती है |

कृष्ण तवक्या सिंह
06.03.2021

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दादी की परी
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