कविताअतुकांत कविता
बिटिया कहे
देखा है हमने!
बचपन से ही जोड़ने लग जाता है हर पिता,
संदूकची में कई सारी पास बुक!
और जोड़ता हैं उसमें ढेरों उम्मीद--
खुद की ख्वाईशों पर पैबंद लगा !!
आखिर क्यूं डरता तू ??
देखा है हमने!
अक्सर पिता को हिसाब लगाते ,
कितना जुड़ गया अभी कितना रहा बाकी।
क्यूंकि सभी कुछ देना है ना उसे-
वो सब सुविधाएं खरीद कर दहेज में!!
आखिर क्यूं डरता तू ??
देखा है हमने!
बचपन से हर ख्वाईशों को पूरा करते,
सक्षम और सबल सब बनाते !!
फिर क्यूं अपनी ख्वाईशों का गला घोंट-
ये धन जोड़ता डालते पिता!
आखिर क्यूं डरता तू ??
देखा है हमने!
जाने कितनी ही बेटियां इस की बलि चढ़ गई!
कुछ घुट -घुट के जीती रही कुछ घुट के मर गई!
याद आये कुछ ऐसे भी पल !
कुछ जल गई ! कुछ को जला डाला!
कुछ ने खुद मौत को सौंप जीवन खत्म कर डाला!
बस अब और नहीं!बस अब और नहीं!
अब खुद को ना झुका ऐ पिता!!
आखिर क्यूं डरता तू ??
देखा है हमने!
सभी प्रथाओं को निभाते !प्रार्थना करते!
चलो चला दो अब तुम ही कोई ऐसी प्रथा!
बेटियों है अनमोल ना लगाने दे कोई मोल !
पढ़ा- लिखा काबिल बनाया -
अब खुद को ना झुका !
आखिर क्यूं डरता तू ??
उठो आज प्रण करों !!
दो सम्मान बेटी को!! सशक्त करो!!
प्रार्थना यही !!
सबल बनाओं !! सामान मत बनाओ बेटी को!!!
इक नयी चिंगारी जलाकर हंसते हुए विदा करो!!
दहेज प्रथा को खत्म करों!!
दहेज प्रथा को खत्म करों!!
एकता कोचर रेलन