कविताअतुकांत कविता
महादेव के नज़रों से🙏
तू नारी है अपने में पूर्ण है
कर्मठता है तुझमें!
कोमल है चट्टान है
दुर्गा, काली, चंडी है
रोज नहीं रचनाएँ गढ़ती है
अपने को परखती है....
समाज के बनाए हुए
वसूलों पर....
पिसती है फिर भी
खड़ी रहती है
चट्टान की तरह....
नदियों की धारा की तरह
बहते हुए.... करती है
उद्धार सभी का।
नहीं रोक पाएगा कोई तुझे!
जब तू बन जाएगी,
सैलाब की तरह.....
"तू नारी है अपने मे पूर्ण है"
खड़ी कर ले चाहे,
जितने भी दीवारें...
ध्वस्त हो जाएगी सारी।
बन के उजाला अँधेरों को
मिटाती है तू.....
तप कर लोहे की तरह
जब बन जाएगी त्रिशूल!
कर देगी संहार,
सभी राक्षसो का.....
तू नारी है अपने में पूर्ण है
कर्मठता है तुझमें!
कोमल है चट्टान है
दुर्गा, काली, चंडी है.....
✍️चम्पा यादव