कविताअतुकांत कविता
"नारी उपहार है सृष्टि का"
"नारी तुझे क्या उपहार दूँ
तू तो खुद उपहार है #सृष्टि का!"
नयी रचनाएँ गढ़ती है तू!
फिर उसे सिंचती है अपने
खून-पसीने से, खुदको खो कर!
हर क्षेत्र मे लहरा चुकी है
अपना विजय पताका....
तूने सदैव वृक्ष की तरह,
सिर्फ़ देना सीखा है।
तू है जगत जननी!
तेरे बिना यह सृष्टि,
जैसे उजड़ा बसेरा।
तूने तो जान भर दी है सृष्टि में!
तू है जैसे #चाँद पूर्णिमा का!
तू है जैसे बसंत की #बहारें!
तू है जैसे #भोर की किरण!
तू है जैसे #पहली बारिश की बूँदे!
तू है जैसे खिलता हुआ #फूल!
तू है जैसे नदियों का #कलरव!
तू है जैसे सागर की #मस्त लहरें.....!!!
✍️चंपा यादव
8/3/2021