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नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं - Ritu Garg (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं

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नमन मंच
महिला दिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
महिला दिवस पर मेरी प्रस्तुति
नारी कोमल है, कमजोर नहीं

नारी कोमल है,
कमजोर नहीं।
नारी केवल देह नहीं,
मौन है अनभिज्ञ नहीं।
देख कर आज की हलचल
मैं पथ से अनजान नहीं,
देखकर कुरीतियों का बंधन
मैं मुक्ति से अनजान नहीं।
शरीर से मौन है,
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं.।
नारी कोमल है,
कमजोर नहीं।

जंजीरों में जकड़े हुए हैं खुद से
मुक्ति सेअनजान नहीं,
पहाड़ से हम डटे हुए
आंधी तूफानों से अनजान नहीं।
शरीर से मौन हूं
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं।
नारी कोमल है,
कमजोर नहीं।

पेड़ से हम खड़े हुए
अंकुर से अनजान नहीं,
घनघोर बादल से छाए हुए
बारिश से अनजान नहीं।
शरीर से मौन हूं
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं।
नारी कोमल है ,
कमजोर नहीं.।

चांद तारों से ढके हुए
रोशनी से अनजान नहीं।
मन ढका हुआ है अनावरण बादलों से
रोशनी से अनजान नहीं है।
शरीर से मौन है,
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं।
नारी कोमल है,
कमजोर नहीं।
है प्यार ममता की छांव भी
मगर जीवन इतना आसान नहीं।
है रास्ते और मंजिल भी
हौसलो से अनजान नही।
शरीर से मौन है,
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं।
नारीकोमल है
, कमजोर नहीं।
नारी केवल देह नहीं
प्राण और है मन भी,
कर्म करती है सदा
निस्वार्थ और परोपकार से।
वह शरीर से मौन है
पर अंतर्मन से अनभिज्ञ नहीं।
नहीं नारी कोमल है ,
कमजोर नहींl

ऋतु गर्ग
स्वरचित,मौलिक रचना
सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल

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