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माँ और ममता * - Pallavi Rani (Sahitya Arpan)

कविताघनाक्षरी

माँ और ममता *

  • 205
  • 7 Min Read

माँ और ममता
**************
ये माँ भी ना, जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं ।
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैं ।।
🙏
दिल के टुकड़े को अंक लगाये,
गिले बिस्तर पे भी खुशी से सोती हैं
ये माएँ भी ना,जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं ।
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैं। ।
🙏
रातों को जाग-जाग लोरी सुनाती,
नन्ही किलकारी में सपने सजाती
लाडलों के छलके जो आँसू
उसकी आंखें भी रो देती हैं।
ये माएँ भी ना, किस मिट्टी की बनी होती हैं।
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैँ ।।
🙏
हो भूखी क्यूं ना हो कितनी भी खुद वो,
पेट बच्चे का पहले वो भरती हैं
खुशियाँ बच्चों की रखती है ऊपर
खुद ही पीड़ा से क्यूँ ना तड़पती हैं।
पीड़ा उर की नयन में ही छुपाये,
अपने बच्चों की हसी पर जान लुटा देती है
ये माएँ भी ना, जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं ।
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैं ।।
🙏
वो ही बच्चे बड़े जब हो जाएँ ,
माँ की ममता को हंसी में उड़ायें
प्यार के बदले दुत्कार देते हैं जब
फिर भी वो हृदय से भर-भर आशीर्वाद ही देती है।
सच है दोस्तों, ये माएँ भी ना जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैं। ।
🙏
लाडों से जिसको पाला और पोसा,
करुणा संस्कार सृजनहार बनाती
अपने सपने लाडली के आँखों में सजाती,
भरे दिल से अपना ही अंश पराये घर मे विदा करती आयी
सच पूछो तो संसार के हर घर को खुशियों से भर देती हैं
ये माएँ भी ना ,जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं।
असह्य वेदना सहकर सृजन का संसार गढ़ती हैं।।
🙏🙏🙏🙏🙏
पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र

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