कविताअन्य
कविता- आपके ढेरों उपकार हैं माँ
गर्भ में नौ मास अपने खून से सींचा है आपने मुझे,
सहकर पीड़ा आपार दिया है जन्म आपने मुझे,
कैसे चुकाऊँगा आपके ये सारे कर्ज मैं ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी ममतामयी माँ।
पिलाकर अपना दूध मुझे बलशाली बनाया,
खुद रात भर जगकर मुझे लोरी गाकर सुनाया,
कैसे काटे होंगें आपने वो बिना नींद के रैना ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी इष्ट स्वरूपा माँ।
मेरी हर एक शैतानियों को झेला है आपने,
मेरी हर गुस्ताखियों को भी किया है माफ आपने,
सदा मेरे सर पर आपका स्नेहशील हाथ रहा है ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी कर्मयोगिनी माँ।
खुद अनपढ़ होकर भी आपने ही पढ़ना सिखाया मुझे,
अपने पैरों पर हो सकूँ खड़ा इस लायक बनाया मुझे,
दुनिया की भीड़ में एक पहचान दिया मुझे ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी करुणामयी माँ।
सारे अच्छे संस्कार सिखाया आपने मुझे,
जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी बताया आपने मुझे,
परोपकार का भाव भी आपसे ही सीखा मैंने ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी जन्मदायनी माँ।
पिताजी की कमी का एहसास भी मिटाया आपने,
लाख कष्ट सहकर भी स्वाभिमानी बनाया आपने,
सदा सन्मार्ग पर चलना आपसे ही सीखा मैंने ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी प्यारी माँ।
आपसे रहकर दूर खुद को अपराधी मानता हूँ,
आपकी चरणों से बिछुड़कर खुद को कोसता हूँ,
आपकी ही आज्ञा से मैं परदेश को हूँ आया ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार हैं मुझपर ऐ मेरी देवी स्वरूपा माँ।
बस कुछ दिन का और इन्तेजार बचा है अब,
आऊँगा फिर से आपके आँचल की छांव में ही,
बस ये निर्मम कोरोना का प्रकोप खत्म हो जाए ऐ माँ,
आपके ढेरों उपकार है मुझपर ऐ मेरी जीवनदायनी माँ।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।
बिप्लव कुमार सिंह।
फ़रीदाबाद, हरियाणा।
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