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आजकल जब भी - Punam Bhatnagar (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

आजकल जब भी

  • 161
  • 3 Min Read

आजकल जब भी
                         आजकल जब भी बाहर देखती हूँ हर
जगह ऊँची ऊँची इमारते है, बहुत,कही भी कोई दूर दूर
तक किसी को कोई नही पहचानता,
पर क्या में हूँ, मैं भी तो ऊँची ऊँची इमारत में ही तो रहती हूँ, मुझे भी तो ऊपर अच्छा लगता है, फिर मैं कौन हूँ किसी को दोष देने वाली, उस के लिए पहले मुझे जमीन
में आना होगा, तब जाकर मैं किसी दूसरे पर ये दोष दे सकती हूँ, आजकल जब भी बाहर देखती हूँ ऊँची ऊँची
इमारतों को,

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण..!!

Punam Bhatnagar3 years ago

धन्यवाद

प्रपोजल
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