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विजय गाथा - Lakshmi Mittal (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

विजय गाथा

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विजय गाथा

ध्वजारोहण के लिए आगे बढ़ते शर्मा जी के उत्साही कदमों को, असलम खान ने झटके से, उनके आगे आकर, रोक दिया।

"शर्मा जी, आज यह शुभ कार्य मेरे अब्बू के हाथों होना चाहिए।" उसके स्वर में निवेदन तो कतई नहीं था।
"लेकिन सोसाइटी के नए अध्यक्ष तो शर्मा जी हैं.. पिछले कई सालों से यह कार्य अध्यक्ष के हाथों ही होता आया है।" उपाध्यक्ष के स्वर तल्खी भरे थे।

"मेरे अब्बू, सोसाइटी के सबसे बुजुर्ग हैं तो यह अधिकार...।"
गत कई बरसों से इसी सोसाइटी में रह रहे सिल्वेस्टर ने, उसकी बात को बीच में ही काट,आँखें तरेरी, "ऐसा कैसे!.. सबसे योग्य तो मेरे फादर हैं.. यह कार्य उनके हाथों ही होना चाहिए।"
"साड्डे बाबूजी ने कोई चूड़ियां नहीं पहनी .. हक तां असां सिखां दा भी बराबर हुंदा होयेगा?" गुरविंदर सिंह भी तैश में आ गया।

धीरे-धीरे बहस, गर्म होकर, विवाद में तब्दील होने लगी। सदस्य, सांप्रदायिक गुटों में बंटने लगे। लठ, बरछी, तलवार, छूरी, खंज़र सब निकल चुके थे।
इससे पहले कि खूनी जंग शुरु होती, राष्ट्रगान बज उठा। कुछ पलों पहले देशभक्ति भूल चुकी सांप्रदायिक भीड़ का सर, अब शर्म से झुका हुआ था।

भारतीय ध्वज, बुलंदियां छू रहा था।
भीड़ से अलग, देशभक्ति के रंग में रंगे बच्चे, बुजुर्ग और कुछ नौजवान, सलामी मुद्रा में थे। आसमान में लहराता ध्वज, अपनी विजय गाथा स्वयं गा रहा था.. ध्वज, जिसकी बुनाई किसी टोपीधारी ने, रंगाई लंबे चौगेधारी ने व सिलाई किसी पगड़ीधारी ने की थी और जिसे यहां तक लाने वाला, एक भगवा वस्त्रधारी था।

लक्ष्मी मित्तल
स्वरचित मौलिक

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Ajay Goyal

Ajay Goyal 4 years ago

सचमुच राष्ट्रीय गान हमारी एकता का प्रतीक है। उम्दा प्रस्तुति

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