कहानीअन्य
सुनिता कहां हो ? आते ही ऑफिस से मनीष ने आवाज लगायी पर उसे सुनिता घर में कहीं नजर नहीं आयी तो मनीष को घबराहट होने लगी कहाँ गयी होगी ?
सुनिता तो अकेले कहीं जाती नही वैसे मी जब से उनकी जिंदगी में वह दर्दनाक हादसा हुआ तब से सुनिता की मानसिक अवस्था ठीक नहीं रहती थी इसलिए उसे अकेले कहीं जाने नही दिया जाता था।
खुद सुनिता भी तो रोशनी के उजालों से डरने लगी थी उसको हमेशा यही लगता था यदि उस दिन वह अपने पाँच साल के बेटे को लेकर बाहर नहीं जाती तो वह हादसा नहीं होता और उनका बेटा उनके पास होता।
सुनिता और मनीष का ईकलौता बेटा था मोनू । जब से बेटा उनकी जिंदगी में आया था दोनों बहुत खुश थे। किसी बात को कोई कमी नहीं थी ।बेटे के साथ ज्यादा समय बिता सके इसके लिए सुनिता ने नौकरी भी छोड़ दी थी।किसी आया के भरोसे अपने बच्चे को नहीं पालना चाहती थी। अपनी आंखों से एक पल भी ओझल नहीं होने.देती थी सुनिता मोनू को।
समय अपनी रफ्तार से गुजर रहा था मोनू भी पाँचवें साल में स्कूल जाने लगा था।
वह गर्मियों की शाम थी मोनू सुनिता से बाहर चलकर आईसक्रीम खाने की जिद करने लग रहा था।सुनिता ने.मना भी किया की रात को मनीष के आने पर सब चलेंगे लेकिन उस दिन तो जैसे मोनू पर काल ही सवार हो रखा था उसने सुनिता की एक नहीं मानी और रोना शुरू कर दिया।
आखिर सुनिता उसको लेकर आईसक्रीम पार्लर गयी जो घर से नजदीक ही था इसलिए दोनों पैदल ही गये थे।
लौटते में अंधेरा होने के कारण रास्ते में ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कि मोनू का पैर किसी बड़े पत्थर से टकराने से सड़क पर गिर गया ,देखा तो उसका सर किसी नुकीले पत्थर पर लगने से लगातार खून बह रहा था।
वहाँ मौजूद लोगों ने मोनू को अस्पताल पहुँचाया लेकिन तब तक बहुत देर हो गयी थी और मोनू हमेशा हमेशा के लिए सुनिता और मनीष से दूर जा चुका था।
बस तब से ही सुनिता खुद को मोनू की कसूरवार मानती है और खुद को घर की चारदीवारी में बंद कर रखा था।बहुत कोशिश और मनोचिकित्सक की काउंसलिंग के बाद सुनिता नॉरमल हो पायी थी लेकिन फिर भी उसे अकेले कहीं नहीं जाने दिया जा सकता था तो फिर आज कहाँ गयी होगी।सोचकर मनीष के हाथ पैर फूले जा रहे थे।कहाँ ढूँढें,किससे पूछे आखिर कहां गयी होगी।
तभी देखा सुनिता दरवाजे पर खड़ी थी।उसको देखकर बिल्कुल ऐसा नहीं लग रहा था की वह परेशान है या घबरायी हुयी है बल्कि आज कितनों दिनों बाद सुनिता के चेहरे पर संतोष का भाव दिखाई दे रहा था।
कहाँ गयी थी तुम ,मुझे बोला होता मैं लेकर चलता तुम्हें इस तरह अकेले नही जाना चाहिए सुनिता, कितना घबरा गया था मैं।
मैं ठीक हूँ मनीष अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब मैं खुद को सम्भाल सकती हूँ।
पर तुम गयी कहाँ थी यह तो बताओ।
मनीष तुम्हें याद है जब भी मोनू के लिए कोई नया खिलौना लाते थे वह उस खिलौने को जब तक अपने पास रखकर सोता था जब तक दूसरा नया खिलौना नही आ जाता था। अपने सब खिलौनों को अलमारी में सम्भाल सम्भाल कर रखता था जैसे कोई बड़ा अपना सामान रखता है।
आज जब मैं बाहर लॉन में बैठी थी तो एक छोटी बच्ची को देखा जो अपनी गुड़िया के टूट जाने से रो रही थी तो ख्याल आया कि हमारे मोनू के खिलौने भी उसके बिना उदास होंगे कब से उनको किसी ने नहीं खिलाया किसी ने बात नहीं करी।मोनू जब अपने खिलौनो को उदास देखता होगा तो वह भी उदास होगा ।
मैनै मोनू के उदास खिलौनो को उन गरीब बच्चों में बाँट दिये जिनको पाकर बच्चे और उदास खिलौने दोनों मुस्करा उठे।
हमारा मोनू भी अब उनके साथ आसमान में हमेशा मुस्करायेगा।जब जब यह बच्चे उसके खिलौनो से खेलकर अपनी हँसी की किलकारियां छोड़ेंगे हमारा मोनू भी वहाँ दूर आसमान में हँस रहा होगा।