कविताअतुकांत कविता
गुलाब की टहनी
आज झुकी हुई है
कुछ मायूस सी है
खामोश भी
कुछ बोल भी नहीं रही है
आज वातावरण में अपनी
भीनी भीनी सुगंध
फैलाकर उसे
सुगंधित भी नहीं बना रही
ऐसा लगता है कि
कांटो का साथ आज
उसे एक दर्द की इंतहा सा
सता रहा है
इसीलिये आज मुस्कुरा नहीं रही
बल्कि
सुबक सुबककर
कतरा कतरा
दरिया दरिया
तन्हा तन्हा
रो रही है है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001