कवितानज़्म
रात की दीवार पर
रात की दीवार पर ढेर सारे खत लिखकर रख दिये मैंने
क्यूंकि ये वही दीवार है जिसपर बैठकर हम घंटों बाते किया करते थे
आसमां का चांद भी उस वक़्त बिखेरता था तुम पर अपनी शीतल चांदनी
और मैं तुम्हारे चेहरे को ही अपना चांद कहा करता था
मगर तुम हमेशा ख़ुद को हवा कहा करती थी और कहती थी कि मैं एक दिन गायब हो जाऊंगी
देखो आज वो दिन भी आ गया जब तुम मुझसे दूर जा रही हो
किसी और रस्ते को , किसी और की मंजिल बनकर
मेरा ख़्वाब बनकर, किसी की हकिकत बनकर
इसीलिए ही लिखे हैं मैंने ये खत और रख दिये है रात की दीवार पर कि फिर ये हवा इस तरफ से गुजरी तो इन खतों को उड़ा ले जाएगी अपने साथ और मैं जान जाऊंगा उस वक़त तुम्हारी मौजूदगी अपने आस पास
~~ नरेश बोकण गुर्जर ~~
हिसार , हरियाणा