कविताअतुकांत कविता
पिछले दिनों की चिंता के बाद आज
बोझ जो सीने पर ही नहीं
मेरे मस्तिष्क की गहराई में भी समाया था
उतार कर फेंकते ही
गहन सुकून महसूस हुआ
दबाए रखा था जिसने मेरे व्यक्तित्व को
हो गई थी मेरी ही नजरों में
मेरी धूमिल छवि
हक़ीक़त ने मेरे चित्र संग
उज्ज्वल चरित्र को फिर से मुझमें जिंदा किया
मैं खुश हूं उतनी ही आज
जितनी मैं वर्षों पहले थी
कितना आनंदित कर रहा
लौटकर वापस आना
उस अंधेरी गली से
जिसका नाम था आकर्षण
शुक्रिया उस अंधेरी गली का
जिसने आभास कराया कि
अंधेरे का आकर्षण मात्र आकर्षण ही था