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दुष्कर ही श्रेयस्कर - पं. संजीव शुक्ल 'सचिन' (Sahitya Arpan)

कवितागीत

दुष्कर ही श्रेयस्कर

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#दुष्कर_ही_श्रेयस्कर
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कठिन डगर या दुष्कर जीवन, तनिक नहीं घबराना रे|
साध लिया है उर को जिसने, उसका हुआ जमाना रे||

संघर्षों की बजे मुरलिया, गीत सफलता की गाये|
कर्म किए अति दुष्कर जिसने, जग में आज वहीं छाये||
जीवन जग माया का मेला, क्या खोना अरु क्या पाना|
सुख- दुख है जीवन के साथी, रहता है आना जाना||१||

संघर्षों से हुए विलग जो, नाम वहीं मिट जाना रे|
साध लिया है उर को जिसने, उसका हुआ जमाना रे||

स्वप्न देखना खुली आँख से, सोकर वक्त बिताना क्या?
विजय वरण जो करना चाहे, कण्टक से भय खाना क्या?
मिली सफलता जग में उनको, चला समय के साथ सदा|
विफल वहीं जो सोच रहे हैं, क्या कुछ अपने भाग्य बदा||२||

कर्म के पथ पर चलते जाना, करना नहीं बहाना रे|
साध लिया है उर को जिसने, उसका हुआ जमाना रे||

कर्महीन बस रोना जाने, मिथ्या करें विलाप वहीं|
पुष्प बिछे पथ पर भी चलना, उनके बस की बात नहीं||
पर्वत को राई जो करते, कर्मवीर हैं कहलाते|
भाग्य कोसते कर्महीन बस, खुद ही खुद को बहलाते||३||

कर्मठता बस एक ही सीढी, जय का यहीं ठिकाना रे|
साध लिया उर को है जिसने, उसका हुआ जमाना रे||

✍️पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'
मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण, बिहार
9560335952

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