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मन के भाव - Punam Bhatnagar (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मन के भाव

  • 175
  • 4 Min Read

रोज की तरह में आज भी अपने घर के बाहर गार्डन में घूम रही थी ,रोज ही एक बच्ची अपनी मम्मी के साथ गार्डन में आती थीं
वो रोज ही अपने मम्मी के साथ वहां पर वो बच्चो के साथ खेलती
नई बस उन को देखती मन कहता कि उस की मम्मी से पूछलू
की क्या बात है, एक दिन हिम्मत कर के पुछा की क्या हो गया है
तो उस की मम्मी ने कहा उस की तबीयत ठीक नई रहती है
तब मुझे बहुत दुख हुआ में रोज ही उसे मिलती हम बहुत
बाते करते वो बहुत प्यारी है ,कभी-कभी वो उदास हो जाती थी ,पर में उसे मना ही लेती थी ,हमेशा उसे आगे
जाने का ही रास्ता बतया, कही ना कही मुझे उस में कोई तो मेरा अपना दिखता था, पता नई पर ये ही थे मेरे मन के भाव मेरी खुशी उस बच्ची में ही थी,
कभी-कभी उस को देख कर लगता था की उसे अब बहुत कुछ सीखा है उस ने आज भी वो मेरे आसपास ही
रहती है पर पता नहीं है कब तक पर आज तो वो मेरे साथ है!

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत सुंदर रचना... मेम नई की जगह नही कर लीजिए..!

Punam Bhatnagar3 years ago

जी

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत सुंदर रचना...

Punam Bhatnagar3 years ago

धन्यवाद 🙏

दादी की परी
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