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अंतिम यात्री - Mahesh Verma (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

अंतिम यात्री

  • 215
  • 4 Min Read

अंतिम यात्री...

आँखे बंद थी
देख रहा था
लोग रुदन कर रहे।।

शोर मचा कर
जोर जोर से
सीस मुझ पर धर रहे।।

याद आ रहा
आज बचपन
पहले माँ नहलाती थी
आज लोग नहला रहे।।

बच्चो सा बरताव किया
कपड़े नए पहनाए है
उठा लिया है कंधो ऊपर
पूरा गाँव घुमा रहे।।

नफरत की है जीवनभर
वो आज देखने आए हैं
कहा गए ओ भाई मेरे
कह प्यार लुटा रहे।।

लोग पूछते रहे
वो किस लिए विदा लिए
भले मानुष थे
वो कैसे चले गए।

इंतजार कर रहा 
आज मेरा श्मशान।
क्या थी क्या हो गई
आज मेरी पहचान।।

चिता पर लेटा हूँ
आग अभी बाकी है।
भूलो ना मुझे तुम
शराद अभी बाकी है।।

मरने पे रो रहे जो
देख आज डर रहे।
पिशाच नाम दे दिया
दूरी मुझसे कर रहे।।

तुमने ही बुलाया है और
लौट आज आया मैं।
पहले में अपना था
बना अब पराया मैं।।



महेश'माँझी'

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आदरणीय आपने सा रे ग़ा मा इवेंट ऐड कर लिया है इसे हटा लीजिए

ACHAL SINGH

ACHAL SINGH 3 years ago

मनुष्य जीवन की वास्तविकता पर प्रकाश डालने वालीं अद्भुत कविता superb

Mahesh Verma3 years ago

धन्यवाद आदरणीय

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

Mahesh Verma3 years ago

धन्यवाद जी

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