कविताअन्य
दिल में मेरे आज भी वही उमंग है
बस उम्र का तकाज़ा है,जिसने लाचार किया है
मै एक अदाकारा थी, ता उम्र रहूंगी
भले ही समाज ने आज, बहिष्कार किया है
तो क्या हुआ जो नहीं चल पाती
आज अपने कदमों पर
मेरी बेसाखी मेरा सहारा
थिरकना सिखाती है मन की धुन पर
आज भी संगीत की सरगम
व्याकुल कर देती है मन
अपनी छाया में आज भी
देखती हूं वही अल्हड़पन
देखती हूं वही अल्हड़पन।