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Khud se Rubru - Varinderpal kaur babli (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

Khud se Rubru

  • 317
  • 5 Min Read

खुद से रूबरू

जिंदगी का फूल बार बार नहीं खिलता
खोया हुआ वक़्त वापिस नहीं मिलता

सपने कब मरे हैं दिल कब बूढ़ा हुआ
झुर्रिया आने से बस नूर से जुदा हुआ

ये सपने भी तुम्हारे जीवन भी तुम्हारा है
लोग चले जाएंगे सफर भी तुम्हारा है

बहुत से ख्वाब इन आखो ने बीच दिए
बेचने के बाद फिर नए कभी न लिए

सपनो की नगरी अजीब सी नगरी है
झूठी कभी सच्ची ख़ुशी दे जाती है

जगा हु नींद में भी सपने क्यों सुला दिए
याद कर उनको जो हसते हुए रुला दिए

हौसले की दवा ले के चलना शुरू कर
बबली खुद को खुद से ही रूबरू कर

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Varinderpal kaur babli

Varinderpal kaur babli 4 years ago

shukriyaa

Ritu Garg

Ritu Garg 4 years ago

व्हा बहुत खूब

प्रपोजल
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