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पराया धन - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

पराया धन

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  • 7 Min Read

#पराया धन

कुछ फरियादे!
लेकर आई हूं.......मां!

भेज ना देना वापस
पराया धन! कहकर....... मां!

जिस हक से तुने
बेटों को रखा है ...... मां!

उसी कोख से मैं भी
तो जन्मी हूं...... मां!

कहेगा समाज कुछ कहकर
विदा ना कर देना....... मां!

क्यों? समाज के घर
कोई बेटी नहीं जन्मी होगी कभी .......मां!

दर्द का एहसास! तो उस
समाज को भी हुआ होगा कभी .......मां!

लेकिन वह भी समाज
क्या? कहेगा कहकर........मां!

कर दिया होगा! बेटी को विदा!
अगर तू भी डर गई समाज से तो फिर...... मां!

कभी कोई बेटी
फरियाद! लेकर नहीं आएगी....... मां!

घुट जाएगी! यह सोच कर
कि समाज क्या? कहेगा ........ मां!

फिर ना कहना! कि क्यों?
मैंने बेटी को विदा किया........!

आखिर! कसूर क्या है मेरा
क्या? अपराध किया है मैंने....... मां!

कि तू मुझे अपना नहीं सकती
आखिर जन्मी को तेरे कोख से हूं..... मां!

तो फिर क्यों मेरे लिए
कोई कोना खाली नहीं........ मां!

जब तक तू जिए तब तक
अपनी पलको में रखना....... मां!

उसके बाद मेरी किस्मत
के भरोसे छोड़ देना......... मां!

"मत करना चिंता समाज की"

जी लेने दे मुझे कुछ पल
खुशी से तेरी गोद में .........मां !

मुझे पता है तुझे मेरी चिंता है कि
तेरे जाने के बाद क्या होगा मेरा पर....!

ए भी तो सोच अभी तो तेरे सहारे
आई हूं वापस!.........मां!

बाद में किसके सहारे
आऊंगी वापस............ मां!

तू रख ले मुझे अपने सिरहाने! में.......... मां!!!

चम्पा यादव
18/08/20

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