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मन दर्पण - Sapna Vyas (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मन दर्पण

  • 225
  • 12 Min Read

मन की बगिया के कुछ प्रसून
जो आज भी हंसते खिलते है
जो काल चक्र से ना सूखे
नाही उम्र के दौर से है मुरझे
है आज भी मन में उठी हिलोर
मेघों का आंचल सिर पे ओढ़
थिरकुं नाचूं मैं बन चपला
बारिश की पहन कर पैंजनियां
नयनों में अंबुद अंजन भर
भीनी सौरम सी महकु मैं
लाली फूलों की लब पे लगा
चंचल तितली सी झूमूं मैं
अगणित बसंत इन नयनों से
मैंने हरे भरे सुंदर है जिये
पतझङ के थपेडे भी है सहे
कई गरल घूंट भी मैंने पिये
फिर भी कभी मन न हुआ विचलित
सदा रहा ये हर्षित उल्लासित
जैसी भी आई परिस्थिति
मैं रही सर्वदा प्रफुल्लित
कहते है मन के हारे हार
और जीत हमेशा मन के द्वार
बचपन की सुहानी हो सुबह
या हो वृद्धत्व की ढलती सांझ
जीर्णावस्था की मिली सौगात
मन बरसाता यौवन फुहार
है तन अशक्त पर मन सशक्त
दिल करता नाचूं मैं पूरी रात
पहनूं घूंघरू छम छम नाचूं
पग सुंदर धुन पर थिरकाऊं
संगीत सुनाये ग्रामोफोन
उसकी हर धुन पर इतराऊं
हो प्रियतम से फिर आज मिलन
बनुं साजन की बाहों का हार
कामंनियां गाये प्रणय गीत
मैं सज आऊं सोलह श्रृंगार
पर उम्र का इक दौर आता है
कोई न साथ निभाता है
ये वक्त जो काटे न कटता
खालीपन खुद को खलता है
धुंधली यादों की धुंध छटी
गुजरे अतीत की धूप खिली
बनना मैं चाहती नृत्यांगना
कुल मर्यादा बंधक थी बनी
बेटी हूँ क्या ये दोष मेरा
आजाद परिंदे सी न उङूं
अपने मन की कुछ कर न सकूं
बस वृत्त की परिधि बन के रहूँ
तहजीब अदब का आभूषण
हर पल संग मुझको पहनाया
तनया होना मुझे तङपाया
मन की इच्छा को दबवाया
कुछ करना था कुछ बनना था
जज्बे को माँ ने जितवाया
बङे प्यार समझ से रखी बात
बाबा को सब्र से समझाया
मेरी लगन जुनून के समक्ष
सबको नतमस्तक मनवाया
माँ की ममता बाबा के प्यार ने
सपना मेरा सच करवाया
बिटिया के सपन को मत कुचलो
कुछ करने दो कुछ बनने दो
दो मुक्त गगन उन्मुक्त हवा
उसे स्वच्छंद विचरण करने दो
माँ बाबा पर मुझे हुआ नाज़
प्रतिभा के पंखों ने ली परवाज़
गाँव की गलियाँ तज के मैं
उङ आई थी शहरी आकाश
मेहनत मेरी तब रंग लाई
बेहतरीन अदाकारा कहलाई
अतीत के जग से वापिस मैं
अब वर्तमान में लौट आई
मन के भावों से ओतप्रोत
है सच्चाई या इक स्वप्न
उर में उठी है मीठी उमंग
नाचे मयूर मन तन तरंग
दृढ निश्चय है उर का साथी
हिम्मत और साहस है सारथी
करो हौसलों को अपने बुलंद
है जीत तुम्हीं को पुकारती
जग की होती है यही रीत
हारने के बाद ही मिले जीत
विपरीत वक्त से न हो विचलित
हंसमुख होता है मन का मीत
जीवन की डगर है कठिन मगर
हंसते हंसते तुम पार करो
मंजिल मुस्का के मिलेगी तुम्हें
पथरीली राह से तुम न डरो
पीछे मुङकर न कभी देखों
बस आगे बढ़ते जाओ तुम
दृढ निश्चय साहस के बल पर
इक कामयाब कहलाओ तुम।
सपना यशोवर्धन व्यास 😍🙏🌑🙏

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

Sapna Vyas3 years ago

धन्यवाद नेहा जी😍🙏⚘

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