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एक साया सा - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एक साया सा

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कदम लड़खड़ा जाते हैं
अब भी
कि लड़कपन अभी तक नहीं गया
बचपन कहता है कि
अब तू उम्र के उस पड़ाव पर है
कि खेलना बंद कर और
हाथ छोड़ मेरा
मैं मन ही मन
सोचती हूं कि
मुझे खुद को गर
जीवित रखना है तो
जेहन में पलते
बच्चे को कभी नहीं
मारना है ताकि
जब सब छोड़ देंगे साथ मेरा
यह हमेशा रहे तब संग मेरे
बनकर एक साया सा और
मुस्कुरा कर कहे कि
चल उठ
खेलने चलते हैं
किसी पार्क में
झूला झूलते हैं
बचपन की यादों के झूले में झूल
सब गम भुलाते हैं
आ मेरा हाथ पकड़ और
बचपन की छांव
ममता के गांव में
लौट चल।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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