लेखअन्य
ह्यूमन सायकोलोजी
-------------------------
अभिप्राय --- (Opinion)
(मेरे अपने विचार )
आप पैदल कहीं जा रहे हैं भीषण गर्मी है और आप पसीने से तरबतर हो और प्यास से गला सूख रहा है और पानी भी कहीं नहीं मिल रहा है ऐसेमे आपको एक वृक्ष दिखाई देता है ,और आप उस वृक्ष की छाँव में थोड़ी देर आराम के लिये जाकर खड़े हो जाते हैं ,बस उसी समय वृक्ष के सामने एक घर के फर्स्ट फ्लोर की खिड़की खुलती है और खिड़की खोलनेवाले व्यक्ति से आपकी नजरें मिलती हैं, आपकी हालत देखकर वो व्यक्ति आपसे इशारे से पूछता है " पानी चाहिये?
इस समय वो व्यक्ति आपको कैसा लगा ये आपका पहला "अभिप्राय " है
वो व्यक्ति आपको घर के नीचे आने का इशारा करके खिड़की बंद कर देता हैं आप घर के नीचे पहुँच जातें हैं १५/२० मिनिट बीत जाने पर भी घर का दरवाजा नहीं खुलता
अब वो व्यक्ति आपको कैसा लगा ? ये आपका दूसरा "अभिप्राय" है
१५/२० मिनिट बाद घर का दरवाजा खुलता है और वो व्यक्ति आपसे ये कहता है की देरी के लिये मुझे क्षमा कीजियेगा परन्तु आपकी हालत देखकर मुझे ऐसा लगा की इस समय आपको पानी की बजाय "नींबू-शरबत" पिलाना योग्य होगा इसीलिए थोड़ी देर हो गयी
अब वो व्यक्ति आपको कैसा लगा ? ये उस व्यक्ति के प्रति आपका तीसरा "अभिप्राय" है
और जब उस व्यक्ति ने आपको शरबत का गिलास पीने को दिया और शरबत को होंठो से लगाते ही आपको ख्याल आता है की अरे ! इसमें तो शक्कर ही नहीं है !!!!!
अब वो व्यक्ति आपको कैसा लगा ????
उपरोक्त एक सामान्य सी घटना में जब किसीके प्रति आपका "अभिप्राय" बार बार बदलता है,तो आपको ये सोचने की ज़रूरत है की क्या आप वाकई में किसीके प्रति अपना "अभिप्राय" देने के लायक है अथवा नहीं ?
उपरोक्त घटना हमें ये बताती है की हकीकत में इस दुनिया में आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप जो आपके साथ पेश आये अथवा आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप आपसे बर्ताव करे तो वो व्यक्ति अच्छा और ऐसा नहीं करे तो वो व्यक्ति बुरा ???
बस यही ह्यूमन सायकोलोजी है !!!!!!!!
सी. यस. बोहरा
"अमोल"