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हमारी साइकिल - Punam Bhatnagar (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

हमारी साइकिल

  • 181
  • 7 Min Read

हमारी साइकिल

माँ पापा  को बोलो ना की मुझे नई साइकिल दिला दे
स्कूल मैं सब मेरा मजाक बनाते है ,की तेरी साइकिल
बेलगाड़ी है, माँ अब मैं अगर पापा ने नई साइकिल नही
दी तो अब में स्कूल नई जाऊंगा बोल देना!
माँ अच्छा ठीक है बोल दूँगी अब तो जा स्कूल देर हो गई
है, सोनू  मुह बनाता हुआ चाला गया, उस के जाने के बाद माँ सोंचने लगी सोनू अब 10 वी में है ,छोटा तो है नई की उसे बहला दिया जाय घर के हालात ठीक नहीं
थे माँ बीमार पापा भी दिन रात मजदूरी कर रहे है बस इतना ही कमाते की उन तीन लोगों पेट भर सके बाकी
सोनू की स्कूल की फीस में चला जाता अब नई साइकिल कहा से आए , बस फिर क्या था, माँ
अपने काम में लग गई शाम को जब सोनू के पापा
आज जल्दी ही घर आगए, माँ ने पूछा भी की क्या
बात है आज आप जल्दी घर आ गये क्या बात है
सोनू के पापा बोले की कोई बात नई बस तबीयत
ठीक नई लग रही हैं ,आज आराम कर लेता हूँ
कल तक ठीक हो जाऊंगा, अब सोनू भी स्कूल से
आ गया था, रात का खाना खाने के बाद सब सोने की तैयारी कर रहे थे, की अचानक की सोनू के पापा की
तबीयत खराब होने लगी बहुत पसीना आने लगा
सास भी नई आ रही थी बस अब क्या था, सोनू को
कुछ ना सूजा उस ने पापा को अपनी साइकिल में ही
दवाखाना ले के गया, डॉ ने कहा बहुत ठीक समय में
ले आय नई तो आज कुछ भी हो सकता था, सोनू को
आज एहसास हुआ की अगर उस की साइकिल नई होती
तो वो सायद अपने पापा को खो देता आज उस को उस की साइकिल सब से प्यारी लगी ,अब वो अपनी पुरानी
साइकिल का ख्याल रखने लगा, अब उसे नई साइकिल
नई चाहिए थी , अब वो अपने माता-पिता के साथ खुश था ,बहुत!

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

रचना बहुत बढ़िया है मगर कुछ शाब्दिक त्रुटियां खलती हैं। उन्हें ठीक कर लीजियेगा रचना और निखर जाएगी

Punam Bhatnagar4 years ago

जी बिलकुल

दादी की परी
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