कविताअतुकांत कविता
*कौन हो तुम*
अनदेखी अनजानी अजनबी सी कौन हो तुम ,
तुम्हारा फोन आते ही रिंगटोन दिल में बजने लगती है ,
अब अक्सर रात की नीरवता मुझ पर भारी नहीं पड़ती , तुम्हें जो सोचने लगा हूं ।
मैं अब अकेले में तुम्हें याद कर बरबस मुस्कुरा उठता हूं।
एक आदत सी बन गई हो तुम मेरी जरूरी ।
अब तुम्हारे बिन नहीं रहा जाता ।
कब इन काल्पनिक मुलाकातों से निकलकर मेरे समक्ष आओगी तुम,
मेरी प्रेयसी , मेरी पत्नी बनकर, घूंघट ओढ़े,
सदा सदा के लिए,
मेरी अनदेखी अनजानी अजनबी , अब मेरा तुम्हें देखे बिना गुजारा मुश्किल है ।
मौलिक एवं स्वरचित
सरिता गुप्ता
Khubsurat panktiyan dear
हार्दिक धन्यवाद जी ।
बहुत अच्छी कविता बधाई।
जी हार्दिक धन्यवाद ।