कवितागीत
सा रे गा मा पा में आयोजित कहानी के ऊपर गीत लिखने की प्रक्रिया में मेरी रचना,,,,,
शीर्षक- गुँजन
घर से दूर अकिंचन में था
मैं एक गहरे चिंतन में था,
शाम-ए-मौसम चुप था लेकिन
तूफ़ान तो मेरे जीवन में था।।
सहसा फोन ने रिंग बजाई
'हेलो कौन' दिया शब्द सुनाई,
मैं तो अब कुछ बोल न पाया
इतनी मधुर आवाज जो आई।।
मैं नीरव था वो गुँजन थी
अनजानी सी एक उलझन थी,
बातें तो इतनी कर डाली
मानो अभी दौर-ए-बचपन थी।।
फ़िर पूछा तुम दीप नहीं हो?
पागल हो क्या कैसे सही हो,
डॉट सुनाई फ़ोन भी काटा
जैसे गलती मेरी ही हो।।
उस दिन मैं मायूस हो गया
जैसे रात-ए-पूस हो गया,
अगले दिन फिर फोन क्या आया
मैं दुगुना ज्यादा खुश हो गया।।
अब अच्छी पहचान हो गई
इश्क़ की अर्जी मान हो गई,
अब मैं उसका जिस्म हो गया
और वो मेरी जान हो गई।।
Himanshu Samar