कवितागीत
कशिश
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सन्नाटे के कोलाहल में इक,
आवाज़ चहकती वो।
झंकृत करके तनमन मेरा,
पायल प्रेम खनकती वो।
आयी थी जिस पल जीवन,
में नीरवता अवसान लिए।
शुष्क हृदय में बारिश बन कर,
प्रणय बेल पनपती वो।
भूल न पाया अब तक जिसकी,
मिश्री मिश्रित वाणी को।
शब्द शब्द में शहद घोलकर,
प्रेम सुधा सी बरसती वो।
रहती हरदम साथ मेरे,
ख्वाबों में और ख्यालों में
रात में चंदा और दिवस में
रवि में रोज़ झलकती वो
शशिरंजना शर्मा "गीत"
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अच्छी रचना है , बिल्कुल कहानी के अनुरूप ।
हार्दिक आभार सरिता जी🙏🙏