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कशिश - Shashi Ranjana (Sahitya Arpan)

कवितागीत

कशिश

  • 388
  • 3 Min Read

कशिश
*--*--*
सन्नाटे के कोलाहल में इक,
आवाज़ चहकती वो।
झंकृत करके तनमन मेरा,
पायल प्रेम खनकती वो।
आयी थी जिस पल जीवन,
में नीरवता अवसान लिए।
शुष्क हृदय में बारिश बन कर,
प्रणय बेल पनपती वो।
भूल न पाया अब तक जिसकी,
मिश्री मिश्रित वाणी को।
शब्द शब्द में शहद घोलकर,
प्रेम सुधा सी बरसती वो।
रहती हरदम साथ मेरे,
ख्वाबों में और ख्यालों में
रात में चंदा और दिवस में
रवि में रोज़ झलकती वो

शशिरंजना शर्मा "गीत"
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Sarita Gupta

Sarita Gupta 3 years ago

अच्छी रचना है , बिल्कुल कहानी के अनुरूप ।

Shashi Ranjana3 years ago

हार्दिक आभार सरिता जी🙏🙏

Ritu Garg

Ritu Garg 3 years ago

बहुत सुंदर

Shashi Ranjana3 years ago

हार्दिक आभार ऋतु जी🙏🙏

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