कविताअतुकांत कविता
गरीबी की मार
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तोड़ जाती है तुम्हारा विश्वास ,तोड़ जाती है हौसला |
गरीबी उजाड़ जाती है ,बना बनाया घोंसला |
अपने पराए हो जाते हैं जैसे साँप और नेवला
हर कोई करने लगता है तुम्हारी जिंदगी का फैसला |
कुछ भी नहीं रह जाता तुम्हारे वश में
तुम्हारी साँसे भी किसी के इजाजत की मोहताज हो जाती है |
तुम्हारे लिए आम बातें भी राज हो जाती है |
सामने आनेवाला कोई बादशाह से कम नहीं दिखता |
हर कोई इस रास्ते से आनेजानेवाला तेरी तकदीर लिखता
गरीबी की मार से इंसान नहीं उठता |
उससे पूछो इंसान की रीढ़ कैसे टूटता |
कृष्ण तवक्या सिंह
21.02.2021