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लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ? - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

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लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?

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लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
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क्या यह व्यवस्था व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित कर पा रही है ? मेरा उत्तर है नहीं | हम अभी भी तर्क नहीं ताकत की भाषा समझते हैं | तमाम तर्कों को ताकत के जोर से दबा देते हैं | हमारा ध्यान तभी किसी समस्या पर जाता है जब उसके लिए भीड़ इकट्ठी हो | जितनी संख्या होगी हमारी बातें उतनी ही जल्दी सुनी जाएंगी | एक व्यक्ति कितनी भी गंभीर बात कह रहा हो उसकी सुनता कौन है |
भले ही भीड़ में व्यक्ति की वह आवाज ही विलीन हो जाती हो जिसे लेकर वह चला था | और उसका स्वरूप वही नहीं रह गया हो जिसे उसने सोचा था | भीड़ उसे दूसरा रूप दे देती है |
जिसने भी लोकतंत्र की यह परिभाषा की है By the people, for the people, to the people. और इस
परिभाषा से क्या कहना चाहा है यह मेरी समझ में अब भी नहीं आता | इस People में Person कहाँ खड़ा है मैं उसे अबतक ढूँढ़ नहीं पाया हूँ |
अगर मैं तंत्र के द्वारा अकेले सताया जाता हूँ तो मेरे दु:ख का कोई अर्थ नहीं है जबतक की सताए जानेवालों की विशाल संख्या न हो | कोई नियोक्ता अपने कर्मचारी के साथ अन्याय कर रहा हो और उसके साथ कोई संगठन
न हो तो उसका दर्द ,दर्द नहीं है | उसे अपने दर्द बताने के लिए भीड़ इकट्ठी करनी पड़ेगी | उसे लोगों को जमा करना होगा तब उसपर सरकार का ध्यान जाएगा | अगर आप अकेले है और आपके मुद्दे कितने भी सार्थक हों कोई ध्यान नहीं देगा |
कोई एक व्यक्ति जिसके पीछे हजारों लोग खड़े हो जाएं उसकी बात सुनी जाएगी | चाहे उसकी बात कितनी ही निर्रथक और तथ्यहीन हो |
हम तब भी उसी युग में जी रहे थे आज भी उसी युग में जी रहे हैं जहाँ व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है | समाज और संगठन महत्वपूर्ण हैं | समाज एवं संगठन की कोई संवेदनशीलता नहीं होती | बस व्यक्ति उसका यांत्रिक अंग बनकर घिसटाता रहता है | जो मजबूत हैं आगे चले जाते हैं जो शारीरिक या सांगठनिक रूप से कमजोर है उसके पीछे रेंगते रहने के लिए मजबूर है | इसमें व्यक्ति की पीड़ा ,असंतोष उसकी तर्क शक्ति दबकर मर जाती है | और वह एक संवेदनहीन यंत्र की तरह बनकर ताकत से संचालित होता है जो समाज उसे मुहैया कराती है | उसके
अंतर से पैदा होनेवाला प्रवाह छिन्न भिन्न हो जाता है |
ऐसे व्यक्ति समाज और शासन के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं क्योंकि उनका मनचाहा इस्तेमाल किया जा सकता है |


कृष्ण तवक्या सिंह
21.02.2021.

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