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नदी की वेदना - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

नदी की वेदना

  • 141
  • 4 Min Read

नदी की वेदना
आग हूं जिससे ढुलकते बिंदु हिम जल के

धारा सूखी, सूखी धरा बिन वन जीवन के

गिरी पत्तियां ,टूटी डाली, उजड़े नीड़ चिरैया के

पनघट,नदिया,ताल- तलैया कहां गये सब बचपन के?


देख तुम्हारी वेदना को छटपटाता है हृदय

मां !मुक्त करेंगे विष से तुम्हे प्रण है अकाट्य

दुष्वृति हमारी, अपमान तुम्हारा अब त्याज्य

ठान ले गर मनुज जो पलट दे साम्राज्य।


निर्मल जल पर उजली किरणें, न हो प्रदूषण

कुंदन सम रेणु चमकेगी,ज्यों जगमग आभूषण

कल - कल निनाद गूंजेगा,लौटेगी हरियाली

करेंगे आचमन ,दे मलीनता को तिलांजलि।


पवित्र , पावन हिम जल से ही भरनी अंजुली

पवित्र , पावन हिम जल से ही भरनी अंजुली।
गीता परिहार
अयोध्या

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Vivek Prajapati

Vivek Prajapati 3 years ago

Bahut khub khubsurat panktiyan 🌺

Vivek Prajapati

Vivek Prajapati 3 years ago

Khubsurat panktiyan

Gita Parihar3 years ago

जी, धन्यवाद

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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