कवितागीत
*इंतजार*
आज भी
राह निहारती है वह दहलीज
नन्हे पैरों ने जहां कदम भरे थे।
दरवाजे के बीच का फासला
खोजता है तुम्हारा वजूद।
तुम गए तो फिर लौट कर ना आए
अभी तक
नजरें वह ढूंढती है अठखेलियां
जहां जवानी ने कदम रखा
जहां तुमने जिद की थी उसे पाने की
सपने सजाने की
धीरे धीरे
कुछ अनसुलझी पहेलीया बुन गए थे
छोड़ गए थे आधी अधूरी जिंदगी
दीवारों की टूटी परत छोड़ गए थे
आजा जल्दी आजा
आंगन की मिट्टी में भी
सूखे झाड़ उगे है
उन्हें हटाने जल्दी सेआजा।
गुनगुनाते हुए
वह रौनक बनकर तुम्हें आना है
गावं की गलियों में तुम को घुमाना है
साईकिल भी नहीं किसी गाड़ी से कम
उस पर बैठकर
जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाना है।
उन अठखेलियां को फिर से जीना है
जीवन के हर पहलू को सजाना है।
ऋतु गर्ग
स्वरचित, मौलिक रचना
सिलीगुड़ी,पश्चिम बंगाल
गांव को इंतजार आज भी है । अच्छी रचना ।
जी धन्यवाद