कविताअन्य
जमाने की नज़र में..
जमाने की नज़र में, मैं भी गुनहगार हूं
मुझेसे किसी को प्यार है, और मैं भी किसी का प्यार हूं
ख्वाबों में मेरे खोई वो, जागी है सारी रातों में
खुद से सवाल कर - कर वो, उलझी है खुद की बातों में
कुछ वो भी बेकरार है, कुछ मैं भी बेकरार हूं
ज़माने की नज़र में, मैं भी गुनहगार हूं।