कविताअतुकांत कविता
तुम भी मुझसे
उतने ही दूर हो
जितना आकाश
धरती से दूर है
जैसे दुर्लभ है
धरती और आकाश का
एक हो जाना
वैसे ही हम दोनों का
मिल पाना दुसाध्य है
दूर से ही
तुम्हें देखना
और तृप्ति से
कल्पना के आलिंगन में लेकर
अतृप्त रह जाना
आह! दुखदायी है.....!
#संदीप चौबारा
फतेहाबाद