कविताअतुकांत कविता
कराह रही है धरा
कर रही है पुकार
हे मनुज मत कर
तु अब मेरी संघार
मैं हूं तेरी वसुंधरा
सजीवों का संचार
जीवन का प्रतिकार
प्रकृति का उपहार
संवेदना तु मारकर
हो गया है दैत्यकार
शस्त्र निज पर ही
क्यों कर रहा प्रहार
मेरी मूल विनाश कर
कर रहा तू अत्याचार
भूल को तु सुधार कर
मुझसे ही है तेरा प्रतिकार
संवेदनाएं जागृत कर
कर सबकी परोपकार
इसमें ही छुपा है तेरा
जीवन का मुल आधार
@©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'