Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
कारवां गुजर गया - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँलघुकथा

कारवां गुजर गया

  • 345
  • 9 Min Read

कारवां गुजर गया ---
-----------------------
मौसम ने करवट ले ली है । बसन्त का मौसम तो दिल में उमंग पैदा करता है। आज बहुत दिन बाद ना लिखने का मन ना पढ़ने का और ना ही टी.वी देखने का मन । सोचा इस गुनगुनी धूप में आराम से बैठ कर चुपचाप पुराने गाने सुने जायें क्यो की कुछ गाने हमेशा दिल में एक मीठा तराना छेड़ते थे और आज भी फिर उन्ही दिनों में पहुंच जाते हैं । गाना आ रहा था कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे ।
क्या रिश्ता था मेरा और तुम्हारा । बस तुमको ना देखती थी तो अच्छा नहीं लगता था । उस चाहत का अर्थ भी नहीं समझती थी । अरे अभी उम्र भी तो नाजुक थी । तुम जब अपनी छत पर सुबह टहलते थे मै अपनी बालकानी में से देखती रहती थी । शायद तुमको तो यह पता भी नहीं था । उम्र में भी बहुत अन्तर था मेरे और तुम्हारे बीच । तुम मेरे भाई के मित्र थे और मेरी सहेली के भाई । अब तो मै अपनी सहेली के पास जाने में भी झिझकने लगी डरती थी कि उसे शक ना हो । धीरे धीरे समय बीत रहा था । एक दिन जब मै तुम्हारे यहाँ पहुँची तब दरवाजे में घुसते ही तुमसे टकराई तुमने गिरने से बचा लिया मै तो बिलकुल घबड़ा गयी तब तुमने कहा कि छुप कर देखती हो और सामने डर रही हो । थोड़ा समय मुझे और दो , मुझे तुम बहुत पसंद हो । मेरा व्यापार बस थोड़ा व्यवस्थित हो जाये । मेरे तो पंख ही लग गये । बस इन्द्र धनुषी सपने देखने लगी । मेरी भी परीक्षा नजदीक थी । उसी समय मेरी शादी की बात शुरू होगयी । मैं कैसे किसी से कहूं समझ नहीं आ रहा था । उस समय लड़कियों पर बहुत बन्दिशे भी थी । अचानक सब कुछ तय होगया । तुमसे मिल भी नहीं पाई शादी की हां होगयी बस रोती रही और उस पल को सिचती रही जब तुमने गिरने से बचाया। जब तुमको पता लगा तुमने बहुत कोशिश की मिलने की पर मेरे तो हल्दी भी लग गयी । जब मेरी विदाई थी ‌। मै रो रही थी तुम खिड़की के पीछे से मुझे देख रहे थे ।
कहीं गाना चल रहा था " कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे "
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल

FB_IMG_1611382243735_1613028964.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG