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संवेदना - Dipti Sharma (Sahitya Arpan)

कवितागजल

संवेदना

  • 196
  • 3 Min Read

नमन मंच
दिनांक ---09/02/२०२१
वार-- मंगलवार
विषय-- #संवेदना

क्यों मानव आज #संवेदना खो रहा है,
धरा सिसक रही आसमां भी रो रहा है।

क्या हो गया है ये आज के इंसान को,
जागती आँखों से भी क्यों सो रहा है।

वो चीख-पुकार ,हो रहा जो नरसंहार,
ये संवेदना शुन्य के कारण हो रहा है।

न बड़ों का सम्मान ,हो रहा अपमान,
इंसा वही काट रहा जो वो बो रहा है।

जहाँ कभी रहा करती थी संवेदनाएँ,
वहाँ इंसानियत का ह्रास हो रहा है।

पहले दुआओं की गांठ ले चलते सदा,
आज अपने पापों को स्वयं ढो रहा है।

दीप"क्यों हो गये सब इतने संवेदनहीन,
किसी की बेबसी का तमाशा हो रहा है।

दीप्ति शर्मा "दीप"
जटनी( उड़ीसा)
स्वरचित व मौलिक

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Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 4 years ago

बहुत खूब

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