कवितालयबद्ध कविता
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं
दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं
भूल न जाएँ ताकत अपनी, भूल न जाएँ चाहत अपनी
देश प्रथम सदियों से अब तक, इसको ध्रुव तारे सा चमकाते हैं
हम है तो ये देश’ के नायक, जुबां बनी सबकी है गायक
लोकतंत्र है लोगों से ही , चलो लोक तंत्र का पर्व मनाते हैं
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं
दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं
जाति धर्म , ये ऊँच नीच, सब कुछ तो ही मिट जाना है
कितना क्षण भंगुर है ये सब , इंसानियत ही रह जाना है
कर्म हमेशा फल देता है, ज्ञान अनन्त का मर्म देता है
स्वार्थ की बेंड़ी पिघला कर, चलो खुशियों को फैलाते हैं
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं
दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं
संविधान ने ताकत दी है , माना अपनों ने कई आफत दी है
लोक तंत्र की लेकिन खूबसूरती, संविधान ने ही राहत दी है
नियम बने, कानून बने हैं, सभी एक ही सूत्र पिरें हैं
सामाजिक खाईं हैं माना , लेकिन हम सब संग बढ़ें हैं
जन जन तक उनके अधिकार बता कर,चलो उनका जीवन हर्षाते हैं
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं
दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं
देखो कोई छूट न जाए, अपनों को कोई भूल न जाए
जाति लिंग और उम्र में फस कर, आँखों पर कोई धूल न छाए
लाल रंग का खून सभी का , एक जैसा इतिहास सभी का
कुर्बानी हम देशभक्तों की, तुमको याद दिलातें हैं
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं
दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें व सभी को बधाई ....आलोक सिंह “ गुमशुदा”