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ऑनलाइन इश्क - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

ऑनलाइन इश्क

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  • 8 Min Read

एक रात अकेले में सोचा कब तक युही जिया जाए ...
चलो शुरू कर फ़ेसबुक वहां टाइम पास किया जाए ...

नही जानता थी मुझे ये अपनी ओर खिंच ले जाएगा ...
हमे क्या पता था हमे भी ऑनलाइन इश्क़ हो जाएगा ...

ऑनलाइन इश्क़ का ट्रेंड तो जैसे घना उजाला था ...
खूबसूरत प्रोफाइल का माया जाल निराला था ...

कोई न जानता मेरी असली पहचान वहा ...
सोचा करे किसी अंजान से गहरी दोस्ती यहां ...

हुआ कुछ यूं वहाँ तो दोस्तो की भरमार थी ...
फ़्रेंडलिस्ट में रिक्वेस्ट आ पड़ी हजार थी ...

मैसेंजर पर भटकते पंछियों का ताता लगा था ...
कौन सच्चा , कौन झूठा पता लगाना मुश्किल था ...

मुलाकात हुई जब किसी अजनबी से वहाँ ...
दोनो एकदम अनजान से एक दूसरे से जहाँ ...

हमारी कई आदतें आपस मे मेल खाती थी ...
उसकी कही हर बात मेरे दिल को बखूबी भाती थी ...

जैसे ही उसके ऑनलाइन आने से हरी बत्ती जल जाती ...
उसी वक़्त मेरे चेहरे पर अचानक मुस्कुराहट आ जाती ...

एक दिन उसने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया ...
मैने भी शर्मा के हिचकिचा के उससे इकरार किया ...

उसके साथ अब आंखे मेरी कई रातें जागने लगी ...
धीरे धीरे वो मेरे और मैं उसके नजदीक आने लगी ...

जीने मरने के वादे क्या वो चाँद तारे तक तोड लाता था ...
बातों ही बातों में मुझे अपनी और खिंच ले जाता था ...

कम ही समय मे हमारा ऑनलाइन इश्क़ परवान चढ़ने लगा ...
दोनो के ही तन मन में अब प्यार का बुखार बढ़ने लगा ...

एक न हो कर भी पास रहना अब तो आदत हो चुकी थी ...
मिलों की दूरी से भी हमारी दास्तान अब गहरी हो चुकी थी ...

जब तक दोनो दिलों में प्यार के एहसास है ...
हम तन्हा नही बल्कि दूर होते हुए भी पास है ...

कभी कभी ऑनलाइन इश्क भी सच्चा होता है ...
क्योंकि यहां हर इंसान एक सा नही होता है ...

ऑनलाइन इश्क की बस इतनी सी कहानी है ...
साथी गर अच्छा हो तो बन जाती जिंदगानी है ...

ममता गुप्ता

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