कविताअतुकांत कविता
" प्रेम 'समर्पण ''
तन समर्पित,मन समर्पित ,....
प्रिये तुझे जीवन समर्पित ....
चाहती हूँ कर दूँ तुझ पर ..
मैं अपना यौवन समर्पित ..
भूल जाऊँ कैसे प्रियतम ..
वो मिलन का क्षण अलौकिक ..
नेह का प्यारा वो बंधन ...
स्नेह का स्पर्श अलौकिक ...
स्वप्न में भी राह देखूँ ..
मैं तो अब केवल तुम्हारी ....
भूल जाऊँ कैसे प्रियतम ...
जीवन के वो पल अलौकिक ...
अनबुझे से ख्वाब मेरे ...
कर दूँ तुझको स्वप्न समर्पित ..
मोह का ये प्रेम बंधन ....
कर दूँ मैं ये धन समर्पित ...
क्या करूँ मैं शिक़वा तुमसे ..
तुम नहीं थे मेरा जीवन ...
रेत का था वो घरौंदा ....
जो बनाये थे हम मिल कर ...
बह गए अरमान मेरे ...
जो ना था मेंरा मुक़द्दर !!
--मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश