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संवेदना... - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

संवेदना...

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संवेदना...

अपनों की दुत्कारी
एक वृद्धा
दो दिन से पड़ी थी
सड़क किनारे।
ठंड से कांपती, खांसती
नाली की बदबू
कचरे के ढेर
और मच्छरों के बीच।
राहगीर आते-जाते देखते
नाक-भौंह सिकोड़ते
मुंह बनाते निकल जाते।
बच्चे कंकर मारकर
पागल-पागल चिल्लाते।
वृद्धा के पास बैठा कुत्ता
लगातार लोगों पर भौंकता
अपनी वफादारी जताता
लोगों की संवेदना जगाता।

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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