कवितालयबद्ध कविता
नमन साहित्य अर्पण एक पहल
चित्राक्षरी आयोजन फरवरी २०२१
दिनांक--०५/०२/२०२१
वार-- शुक्रवार
विषय--
#बचपन_के_दिन
बहुत याद आते है बचपन के दिन,
कैसे भूला दूँ मैं वो बचपन के दिन,
वो रूठना फिर मान जाना,
वो बात-बात पर मुस्कुराना,
वो हंसना और हंसते जाना ,
वो बात-बात पर इठलाना।।
बताओ! कैसे भूला दूँ मैं बचपन के दिन।
वो रोना और सबको रूलाना,
वो माँ से खूब सारी डांट खाना,
रोते ही माँ का आंचल फैलाना,
माँ की गोद में सर रख सो जाना।
आखिर! कैसे भूला दूँ मैं वो बचपन के दिन।
वो पापा का प्यार से सर सहलाना,
कम अंक आने पर डांट भी खाना,
नहीं थकने वाली शैतानी करते जाना,
वो गुड्डे - गुड़ियों के खेल भी खेलना।
मैं कभी नहीं भूला सकती मेरे बचपन के दिन।
एक डाल से दूसरे पर कूदते जाना,
कभी रोना कभी सबको रूलाना,
रूठना फिर पल में ही मान जाना,
छोटे- बड़े सब से खूब बतलाना,
बोलो ! कैसे भूला दूँ वो मेरे बचपन के दिन।।
दीप्ति शर्मा -
जटनी ( उड़ीसा )
स्वरचित व मौलिक