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राहत हो जाए - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कवितागजल

राहत हो जाए

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सरकार करो कुछ ऐसा राहत हो जाए,
गरीबों की सुनने की तुम्हें आदत हो जाए।

तुम्हारे अहसान तले दबकर जीते रहेंगे हम,
कहीं ऐसा न हो कि जमानत जब्त हो जाए।

कभी तुम्हारे लिए उठे हाथ, दुआएं मांगी थी,
बद्दुआ दी तो कहीं कयामत न हो जाए।

दो साथ जरूरतमंदों का हक दिलाने के लिए,
इंसान बनो, इंसान दिखो, इंसानियत हो जाए।

छल, कपट, ईर्ष्या, अहम जरा कम करो,
वोट पड़े तो ऐसा न हो भीतर घात हो जाए।

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’

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