Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मीडिया जनजाति - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

मीडिया जनजाति

  • 120
  • 25 Min Read

माड़िया जनजाति
आजतक जिस जनजाति ने अपनी मूल परंपरा और संस्कृति को सहेज कर रखा है वह है अबूझमाड़ के अनगढ़ जंगलॊं की माड़िया जनजाति।इनको मुख्यतः दो उपजातियों में बांटा गया है, अबुझ माड़िया और बाईसन होर्न माड़िया ।
अबुझ माड़िया अबुझमाड़ के पहाड़ी इलाकों मे रहते हैं।बाईसन होर्न माड़िया इन्द्रावती नदी से लगे हुये मैदानी जंगलो में बसते हैं। घोटू
दोनो उपजातियो की  संस्कृति मिलती जुल-ती । ये दोनो ही बाहरी लोगों से मिलना -जुलना पसंद नही करते।अबुझ माड़िया ज्यादा आक्रमक हैं, वे बाहरी लोगों को अपने इलाके में नहीं आने देते ।उन पर तीर कमान से हमला कर देते हैं।बाईसन होर्न माड़िया  बाहरी लोगो के आने पर ज्यादातर जंगलों मे भाग जाते हैैं।
माड़िया जनजाति की कुछ आबादी धीरे धीरे मुख्य धारा से जुड़ गयी है, लेकिन अधिकतर माड़िया आज भी अपने रस्मॊं -रिवाज के साथ शहरों, कस्बों से दूर घने जंगलो में रहना ही पसंद करते हैं। नमक तेल और गिलेट के गहनों के विनिमय के लिए वे बाहरी लोगों से संपर्क करते हैं ।
 माड़िया लोग बेहद खुशमिजाज शराब के शौकीन और मसमुटिया होते है।मसमुटिया छत्तीसगढ़ का स्थानीय शब्द है जिसका मतलब बच्चे की तरह जल्दी नाराज होना और फ़िर तुरंत उसे भूल जाना होता है । माड़िया काकसार नाम के कुल देवता की आराधना करते हैं । अच्छी फ़सल के लिये ये अपने देवता के सम्मान मे शानदार नृत्य करते हैं। ये बेहद कुशल और साहसी शिकारी होते हैं, हमला होने पर यह बाघ, जंगली भैसे या भालू से लोहा लेने मे नहीं हिचकते । ये बाघ का बेहद सम्मान करते हैं और अनावश्यक कभी उसका शिकार नहीं करते । यदि कोई बाघ का शिकार करने के इरादे से इनके इलाके में जाय तो माड़िया उसे जिंदा नहीं छोड़ते।
माड़िया लोगों में एक घोटुल परंपरा है जिसमे गांव के सभी कुंवारे लड़के -लड़कियां शाम होने पर गांव के घॊटुल घर मे रहने जाते हैं । घॊटुल मे एक सिरदार होता है और एक कोटवार यह दोनो ही पद आम तौर पर बड़े कुवांरें लड़कों को दिया जाता है । सिरदार घॊटुल का प्रमुख होता है और कोटवार उसे वहां की व्यवस्था संभालने मे मदद करता है । सबसे पहले सारे लड़के घॊटुल मे प्रवेश करते हैं उसके बाद लड़कियां प्रवेश करती हैं । कोटवार सभी लड़कियों को अलग- अलग लड़कों मे बांट देता है । कोई भी जोड़ा दो या तीन दिनों से उपर एक साथ नहीं रहता । इसके बाद लड़कियां -लड़कों के बाल सवांरती हैं, और हाथों की मालिश करके उन्हे तरोताजा करती हैं । उसके बाद सभी घोटुल के बाहर नाचते हैं । नाच मे विवाहित औरतें हिस्सा नहीं ले सकतीं लेकिन विवाहित पुरूष ले सकते हैं।आम तौर पर वे वाद्य बजाते हैं ।ये आग के चारॊ ओर घेरा बना कर नाचते हैं ।
इन्हें विवाह के प्रथम वर्ष में यौन संबध बनाने की इज़ाजत नही होती!
माड़िया जनजाति मे विवाह के लिये लड़की की कीमत अदा करनी पड़ती है कीमत ना दे पाने की स्थिती मे लड़के को लड़की के पिता के घर कुछ समय तक काम करना पड़ता है यह अवधि तीन से सात वर्ष तक की हो सकती है । ऐसे विवाह के तय होने पर सेवा के प्रथम वर्ष जोड़े को शारीरिक संबध बनाने की छूट नही होती है, किंतु यदि लड़की की सहमति हो तो उसके बाद यह बंधन हट जाता है ।माड़िया लोगों मे विवाह ही जीवन का सबसे बड़ा खर्च होता है । विवाह करने के लिये लड़की की कीमत दोनो पक्ष बैठ कर तय करते हैं । और वर पक्ष को यह कीमत चुकानी होती है।
घोटुल मे विवाह की आपसी सहमती बन जाने पर युवक -युवतियों  को शादी करने के लिये परिवार वालों को बताना होता है । उनके राजी ना होने पर अक्सर  वे जंगल भाग जाते हैं।लेकिन ऐसी शादमाड़िया घोटुल मे लड़कियां रात मे नहीं सोतीं, लेकिन लड़के रात मे घोटुल मे ही रुकते हैं ।
माड़िया कमर के उपर कुछ नही पहनते। इनमे विवाहोपरांत अनैतिक संबधो की परिणिती हत्या से ही होती है। इनमे बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई नहीं होती। घोटुल मे किसी दूसरे गांव के माड़िया युवक युवतियों को आने की छूट होती है, परंतु गैर माड़िया व्यक्ति को ये पसंद नहीं करते ।युवतियों को शादी के पहले और बाद भी जीवन साथी चुनने या बदलने का पूरा अधिकार होता है । इनमे ममेरे भाई बहनो की शादी करने की छूट होती है और शादी के भारी खर्च से बचने के लिये अक्सर अदला- बदली से विवाह भी होता है ।
माड़िया आदिवासी बेरवा पद्धती से खेती करते हैं । और हर दो या तीन वर्षों मे नया जंगल साफ़ कर और उसमे आग लगा कर नये खेत बना लेते है । यह खेत की जुताई नहीं करते। इनका मानना है कि धरती पर हल चलाना यानी मां के शरीर को घायल करना है । ये सागौन के वृ्क्षों को अपने खेतों के पास पसंद नहीं करते, इनका मानना है, कि सागौन के पत्ते खेती के लिये अशुभ होते हैं ।हाल ही में हुये शोध मे यह बात साबित हुई है कि सगौन के पत्तो से मिट्टी की उर्वरता मे भारी कमी आती है ।ये आपस मे लगे हुये घर पसंद नहीं करते और घर के चारो ओर बाड़ी बनाकर उसमे तंबाखू और अन्य जरूरत के फ़ल सब्जी आदि लगाते हैं । शौच के लिये अपनी बाड़ी का ही प्रयोग करते हैं , जिसका उपयोग खेतॊं के लिये खाद के काम आता है। होती है ।
माड़िया महिला को अगर बाघ उठाकर ले जाय तो वे उसे  दैवीय प्रकोप समझते हैं। इनमें बहुविवाह की इजाज़त भी है, लेकिन विवाह में आने वाले भारी खर्च के कारण ऐसा यदा- कदा ही होता है । इनमे विधवा विवाह की भी इजाज़त है।
माड़िया जनजाति में मौत के बाद आम तौर पर कब्र में दफ़नाया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में शव को जलाया भी जाता है,जो कि उम्र और मौत के कारण और व्याधि इत्यादि पर निर्भर करता है । बच्चों को महुआ के पेड़ के नीचे दफ़नाया जाता है।
माड़िया जनजाति का जीवन,वन्यजीव और वनस्पतियां आज गंभीर खतरे में हैं। नक्सली हों या प्रदूषण विनाश ही इनकी परिणिति नज़र आती है । आज हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा वरना भारत की आखिरी प्राकृतिक धरोहर भी विकास के विनाश की भेंट चढ़ जायेगी!

1612331756.jpg
user-image
समीक्षा
logo.jpeg