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कविताअतुकांत कविता
हर दिन ढलती धूप के संग ढलने लगी है मेरी आशाएं वो आशाएं जो थी इंसान को इंसान कहलाने की एक अदद कोशिश कल फिर पहली किरण की आभा में मैं जिंदा करुँगी जो ढलने लगी है ढलती धूप के संग ..!!
लाजावाब
धन्यवाद जी