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ढलती धूप - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

ढलती धूप

  • 116
  • 1 Min Read

हर दिन ढलती धूप के संग
ढलने लगी है मेरी आशाएं
वो आशाएं
जो थी इंसान को इंसान
कहलाने की एक अदद कोशिश
कल फिर पहली किरण की आभा में
मैं जिंदा करुँगी
जो ढलने लगी है
ढलती धूप के संग ..!!

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Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 3 years ago

लाजावाब

सोभित ठाकरे3 years ago

धन्यवाद जी

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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